"दादी माँ" | अंकित कुमार गुप्ता


दादी आपकी याद बहुत आती है
यह सच है कई बार रुलाती है।
आपकी सकल आँखों से गुजर जाती है,
दादी आपकी याद बहुत आती है।

हर लम्हा मुझे याद है,
आपके लाड़ दुलार के हर लम्हे का स्वाद है।
आप क्यों चले गए मुझे छोड़ कर ?
आपके ना होने का विषाद है।

पर मुझे पता है,
यहीं कहीं हो आप।
हमारे दिल में रहते हो,
यादो में मिलते हो,
बातो में जीते हो
और बहुत आशीष देते हो।

आपने सबको संभाला है,
बचपन से पाला है,
कभी लोरी सुनाई है ,कभी छड़ी भी उठाई है।
आपकी डाट कभी रुलाई है ,तो ममता बहुत हँसाई है।

आज में नाराज हु,
जो कभी न था बो आज हु,
अकेलापन खाता है,
तेरा दुलार याद आता है।
अब कौन मुझे हँसाएगा?
कौन लाड दिखायेगा,
बोलो न तुम कहा हो??

हाँ। हाँ। में भाग्यसाली हू,
जो तेरा प्रेम पाया है,
तेरा लाड़ पाया है ,
तेरे स्नेह में नहाया है।

तुजसे वादा करता हू,
तेरी सीख को में ढालुग।
तेरे आदर्श के सांचे में खुदको में पाका लुगा।

संस्कर तेरे ,मेरा सपना होगा।
और लक्ष्य बग़ल के सामान,
दादी तेरा नाती हु में ,
खीच ली है अब कमान,
ऊँचा करूँगा तेरा नाम ,
खूब कमाऊँगा जग में सम्मान।


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