शोकगीत | कुछ लोग और हैं मरते हैं पूरे तामझाम से बड़े अस्पतालों में मुस्कराते फोटुओं के साथ | रमाशंकर सिंह

रमाशंकर सिंह की सात साल पहले लिखी गयी कविता लोकतंत्र के आदी हमलोग के संख्या पर बहुत जोर देती है , इसलिए यह कविता इस देश के बहुसंख्यक का शोकगीत है। इस बेहतरीन कविता को पढ़िए।

कई बार सुना है कि
सब मर जाएंगें
लेकिन ऐसा भी क्या मरना कि
घर को महीने भर की दिहाड़ी भेजने से पहले ही
गिरकर मरता है राजमिस्त्री
हर शहर में
बहुमंजली इमारत बनाते समय
बिजली का तार जोड़ते जोड़ते
कि एक दिन जीवन की साँस टँगी रह जाती है
बिजली के किसी खम्भे पर
बिजली मैकेनिक की

भूखे बच्चों की अपेक्षाओं से भारी
मिट्टी के मलबे में दबकर
ठेके से बन रहे नाले में
मरता है मजदूर
दिल्ली में लखनऊ में पटना में
या भोपाल में
जहाँ रहते हैं वजीरे आजम और उनके लोग
वहाँ मरते हैं दम घुटने से
कुछ खूबसूरत नौजवान
शहर के मेनहोल में

अपने गाँव के उदास श्मशानों से बहुत दूर
नामवर और बेनाम शहरों की झुग्गियों में
रीवाँ और गोण्डा के दिहाड़ी मजदूर मरते हैं
बिना शोर शराबा किए
गाजीपुर के जुम्मन मियाँ तो गायब ही हो गये
शिवकाशी की पटाखा फैक्ट्री की आग में
जैसे गायब होती है फुलझडि़यों की लौ आसमान में

कुछ लोग और हैं
मरते हैं पूरे तामझाम से
बड़े अस्पतालों में
मुस्कराते फोटुओं के साथ
कुछ तो और हैं खुशनसीब
जिनके लिए लिखे हैं कवियों ने शोकगीत

चित्र फेसबुक वॉल से

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