औरत बन के इस कूचे में, रहती औरत कोई नहीं


ज़िन्दगी क्या है चीज़ यहाँ
मत पुछ आँख भर आती है

रात में करती ब्याह कली जो
वो बेवा सुबह हो जाती है

औरत बन के इस कूचे में
रहती औरत कोई नहीं

बच के निकल जा इस बस्ती से
करता मोहब्बत कोई नहीं

***

ज़िस्म से लिपटकर, रूह छीनने वाले..
इस ज़िन्दा लाश को तेरी तलाश! आज भी है..!!

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इश्क़ हो रहा उनसे
क्या किया जाए
रोके अपने आपको
या होने दिया जाए !!

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हक से दो तो नफ़रत भी सर आखों पर
खैरात में तो तेरी मोहब्बत भी मंज़ूर नहीं
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