दो दिन के देश भक्त..। अमित

 


स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या से ही बधाईयों का दौर चल रहा था। माननीयों की बधाई tv के हर चैनल पर दिखाया जा रहा था।मेरा मन भी प्रफुल्लित था कि कल 15 अगस्त है ,स्कूल में मिठाई मिलेगी।उस समय मेरी उम्र 6 वर्ष थी ।तो 15 अगस्त के मतलब मालूम नही था क्योंकि वो मेरा पहला 15 अगस्त था ।सुबह सुबह जल्दी से तैयार होकर मैं स्कूल के लिए चल देता हूँ क्योंकि मेरे समय मे गाड़ियों का दौर नही था।

आज तो स्कूल की रौनक कुछ और है। रंग बिरंगे कपड़े पहने हर कोई जश्न में डूबा हुआ था।मैं इन खुशियां में इतना प्रफुल्लित था जैसे जमाने की सारी खुशियां मेरे कदमो में हो ।रोज की तरह प्रार्थना और राष्ट्रगान हुआ और प्रोग्राम प्रारम्भ किया गया तो मैं टाट पट्टी पर आगे बैठ गया। बीच बीच में भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता रहा पर मुझे इन सब से कोई मतलब नही था मुझे सिर्फ ये दिख रहा था कि कब प्रोग्राम का समापन हो और मेरे हाथों में मिठाई हो।

धीरे धीरे समय बीतता गया और मैं प्रोग्राम में भाग लेने लगा ।और भाषण भी सुनने लगा था।जिससे मेरी समझ भी थोड़ी बहुत विकसित हो गयी थी ।और मेरे दिमाग में अजीब सवाल भी उठाने लगे थे मैं एक बार अपने सर से पूछा कि सर इन सरकारी किताबों पर मौलिक कर्तव्य लिखा रहता है पर मौलिक अधिकार क्यों नही लिखा रहता है ?तो उन्होंने मुझसे बताया कि अगर सरकार बताएगी मौलिक अधिकार तो लोग सरकार से सवाल करेंगे ।

अब तो दौर बदल गया है कि सरकार से सवाल करना ,मतलब आप देशद्रोही हैं और मीडिया स्ट्रीम से तो सवाल शब्द ही गयाब हैं ।

मीडिया हिन्दू मुस्लिम का डीबेट दिखा कर अपना trp बचा कर रखी ।हां लेकिन दो दिन वो उसी चैनल पर भारत माता की जय ।हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे सब भाई भाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर के प्रेम का भवना जागृत करती हैं ।बाकी दिन तो वो बिष का प्याला लेकर बैठते ही हैं।

नेता को तो अब सिर्फ वोट से मतलब है ।जैसे हम बचपन मे मिठाई के लिए बैठे रहते थे। भाषण और संस्कृति प्रोग्राम से कोई मतलब नही था।उसी तरह उन्हें सत्ता में बना रहना है चाहे जितना ही जात पात  और धर्म का नफरत फैलाना पड़े।

इतनी नफरत फैलाने के बाद भी हम भारत माता की जय का नारा एक साथ लगाते हैं ।

- अमित

 

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