जब तुम कुछ कहना चाहोगे
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हर अँधेरे में एक साँप है
तुम वहाँ जाओगे
और वह तुम्हें डस लेगा
पेड़ की हर डाल पर
एक बंदर बैठा है
जब तुम उससे आँख मिलाओगे
वह उछलकर झपटेगा
और अपने पंजों से
तुम्हारा मुँह नोच डालेगा
जब तुम घर के भीतर रहोगे
तब कुछ चमगादड़
अकारण चक्कर काटेंगे तुम्हारे ऊपर लगातार
और तुम्हें
चिढ़ और बेचैनी महसूस होगी
लेकिन जब तुम घर से बाहर निकलोगे
और कुछ करना चाहोगे
तो सड़कों पर मौत
तुम्हारा पीछा करेगी
तेज ट्रैफिक की शक्ल में
कुछ जानवर तुम्हें विचलित कर देंगे
और तुम अपने भय
किसी के साथ बाँटना चाहोगे
मगर धीरे-धीरे
भाषा समाज की
ऐसी हो गई है
और तुम्हारी आकांक्षाएँ इतनी निष्फल
कि जब तुम कुछ कहना चाहोगे
तो हर शब्द पर
तुम्हारी जुबान अटक जायेगी
हर शब्द को
सरकारी गोदामों का अन्न खाकर
पुष्ट हुए
चूहों ने कुतर डाला होगा।
कवि: पंकज चतुर्वेदी
संग्रह: एक संपूर्णता के लिए
प्रकाशक: आधार प्रकाशन, पंचकूला
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