हैं पाँव धसे बर्फानी में,
तन भेद रहे, मन छेद रहे
हाड़ सिहरा देती हवाएं
पर, लहू हमारे सीने का
नहीं होता है बर्फ कभी
तेरी सुरक्षा के खातिर
सरहद की दुश्वारियों को
सह लेता अंग- अंग मेरा
सीना हो जाता पत्थर,
देह पर्वत-सा
अविचल-अटल
औ अपनी लौह बाजुओं से,
दुश्मन को धूल चटाता हूं
हवा की सांय-सांय,
गोली की धांय-धांय,
चाहे हर ओर गूंजे,
अपनी अंतिम साँस तक
हम फौलाद- सा लड़ते हैं
खा दुश्मन की गोली
मनती अपनी होली
हे वतन मेरे
तुम रहो सुरक्षित!
हम रोज ही खेलते जंग की होली,
तुम शांति और आनंद की होली खेलो
प्रेम और सौहार्द्र की होली खेलो
हम खेलते बर्फ की होली
तुम रंगमय होली खेलो
आओ वतन हम होली खेलें!
- सुजाता कुमारी