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विवाह संस्कार या शक्ति प्रदर्शन ?


    
बीते माह में शादी – विवाहों की धूम रही शुभ महूर्तों में बहुत युगल पवित्र बन्धन में बँधे । विवाह एक संस्कार है जिसके माध्यम से दो युगल सात फेरों एवं सात वचन के साथ एक दूजे संग सात जन्म तक साथ रहने का वादा करते है । लेकिन आज के इस आधुनिक व दिखावा से भरे इस समाज में इस बात का छलावा बनकर रह गया है । पैसे को पानी की तरह बहाया जाने लगा है कोई किसी से कम नही होना चाहता  अगर किसी के घर शादी में लाइटिंग, टेंट, खाना वगैरह पर ज्यादा खर्च किया गया तो उनका पडोसी उससे भी अधिक खर्च कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेगा भले ही वो पैसे उधार ही क्यों न मांगना पडे । वर पक्ष व कन्या पक्ष दोनो ही चकाचौंध से परिपूर्ण वातावरण का निर्माण करते है । जिसमें वैवाहिक रिति – रस्म कम और आडम्बर ज्यादा होने लगे है । जिससे विवाह संस्कार अपनी गरीमा खो रहा है । आज आवश्यकता है कि हमारा समाज इस दिखावापूर्ण वातावरण का विरोध कर संस्कार का पालन किया करे । अगर हम अपने संस्कृति का पालन भी करते है तो उसमें दिखावा के लिए कोई जगह न दें । इस पुनित कार्य के लिए हमारी युवा पीढ़ी ही आगे आकर इस आडम्बर को समाप्त कर सकती है । जिससे हम एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकें ।        - अवधेश श्रीवास्तव