समझे स्वतंत्रता को । अजीत कुमार

 

74 वें स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण करते वक्त हम सबका ध्यान उन अमर बलिदानियों की ओर जाना स्वाभाविक है जिन्होंने हर गांव गली मोहल्ले कस्बों और शहरों में अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई। कितने अत्याचार कितनी यात्राएं कितनी कुर्बानियां उन बलिदानी और उनके परिवारों ने सही आज हमें और खासकर हमारी नई पीढ़ी को इसका भान नहीं है विडंबना यह है कि ना कोई बताता है और ना ही उनके बारे में पढ़ाया जाता है  निस्संदेह गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया लेकिन स्वतंत्रता के परामर्श में जो भाषाई प्रत्येक जोड़े गए उनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस ,शहीद भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,सुखदेव ,अशफाक उल्ला खान ,राम प्रसाद बिस्मिल ,बटुकेश्वर दत्त ,मदन लाल ढींगरा और क्रांतिकारियों तथा बलिदानों की भूमिका को नजरअंदाज करते हैं क्या किसी को चिंटू पांडे मंगल पांडे ,रानी लक्ष्मीबाई की  झलकारी बाई,रानी गोरा राजस्थान के लाडू राम ,मध्यप्रदेश के तात्या भील , राजस्थान के सागरमल गोपा ,झारखंड के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ,बिहार के शहीद रामफल मंडल, हैदराबाद के  कोमारम भीम ,हिमाचल के पहाड़ी गांधी कहे जाने वाले बाबा कांशी राम ,उड़ीसा के 12 वर्ष शहीद बाजीराव आदि के नाम भी ज्ञात हैं? ऐसे नाम अनगिनत हैं पर उनमें से तमाम गुमनाम से हैं धन्य है हमारे इतिहासकार जिन्होंने असली इतिहास में कभी लिखा ना पढ़ाया क्या हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्येक जिले में अस्थानी क्रांतिकारियों की भूमिका के बारे में उनके त्याग और बलिदान के बारे में लोगों को बताएं? स्वतंत्रता की वास्तविक समझ विकसित कैसे होगी? क्या होती है स्वतंत्रता ? कभी इस पर गंभीरता से विचार किया गया ?अधिकतर सिद्धांतकार ,इसे व्यक्ति और राज्य के मध्य शक्ति संतुलन के पश्चिमी चश्मे से देखते हैं ,लेकिन स्वतंत्रता

 

· बहुआयामी अवधारणा है जिसमें व्यक्ति ,समुदाय ,समाज ,राज्य ,विश्व समाहित है ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने का सपना 1947 में पूरा हुआ लेकिन वह तो अंग्रेजी गुलामी से मिली मुक्ति थी स्वतंत्रता हमें क्यों चाहिए थी? हमें कहां और किधर जाना है? क्या हासिल करना है ?इन सवालों पर भी विचार किया जाना था प्रतिवर्ष 15 अगस्त को प्रतीकात्मक रूप में ध्वजारोहण करना ही अभीष्ट नहीं है क्या हमारी सरकार शिक्षा व्यवस्था और समाज हमसे उस उद्देश्य ,लक्ष्य ,दिशा और दृष्टि का  बीजारोपण कर पाए जिसमें स्वतंत्रता को हम सच्चे अर्थों में देख सकें?

· स्वतंत्रता के बाद हमने संविधान बनाया लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की और संसदात्मक संघात्मक प्रणाली अपनाई जो हमारी विविधता में एकता के अनुरूप हैं हमने वैचारिक स्पर्धा बौद्धिक असहमति और विचार आधा तक विरोध को मान्यता दी यह हमारी मजबूती है कमजोरी नहीं पर इसका प्रयोग कर हमें सशक्त समाज और राष्ट्र की ओर जाना है स्वतंत्रता के प्रयोग में यदि हम राष्ट्रीय की उपेक्षा करेंगेतो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अस्मिता अपने हितों और अपनी सुरक्षा को संरक्षित कर पाने में मुश्किलों का सामना करेंगे आज हमें अपनी स्वतंत्रता का ऐसा शंखनाद करना है जो न केवल 1947 की स्मृतियों को ताजा करें वर्णनई औपनिवेशिक ता को अंजाम देने की फिराक में संलग्न ताकतों को भयाक्रांत भी कर सकें।

· क्या हमारी सरकारे शिक्षा व्यवस्था,समाज हमें उस उद्देश्य ,लक्ष्य और दिशा और दृष्टि का बीजारोपण कर पाए जिससे स्वतंत्रता को हम सच्चे अर्थों में देख सके ,आज यूपी बिहार और खासकर पूर्वांचल के क्षेत्रो में पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है लोग छोटे-मोटे रोजगार के लिए बड़े शहरों की तरफ रूख कर रहे हैं जिससे बड़े शहरों में जनसंख्या में विषमता व्याप्त कर गई है जबकि पूर्वांचल के क्षेत्रों को उद्योग विकास के लिए सबसे परिपूर्ण समझा जाना चाहिए क्योंकि यह संसाधन संपूर्ण क्षेत्र है। यहां औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं यहां मैदानी इलाका है जहां पर्ची पैदावार भी होती है यह इलाका कृषि प्रधानता में भी समाहित है जिसने कृषि के क्षेत्र में बहुत बड़े तौर पर रोजगार पैदा किया है लेकिन क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने इस संसाधन संपूर्ण क्षेत्र को तहस-नहस करके रख दिया है । यूपी बिहार और खासकर पूर्वांचल के क्षेत्रों के छात्रों में असीम योग्यताएं है परंतु उन्हें व्यवस्थित प्लेटफार्म ना मिलने की वजह से उनके टैलेंट की अनदेखी की जाती है तथा वे बड़े शहर की तरफ पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं क्योंकि यहां पर शिक्षा व्यवस्था में भी असीम भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसने सरकारी शिक्षा तंत्र को भी तहस-नहस करके रखा है।एक तरफ हम उत्तर प्रदेश का पश्चिमी जिला का देखते हैं जो नई दिल्ली के का संपर्क में होने के कारण बहुत तेजी से फल-फूल रहा है परंतु ही हम दूसरी तरफ पूर्वी यूपी देखते हैं जहां पर संसाधन संपूर्ण होने के बाद भी इस पर सरकारों ने यहां के क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया है तथा यह क्षेत्र अभी भी सरकारी पिछड़ेपन का शिकार बनी हुई है । भारत सरकार वसुधैव कुटुंब की बात तो

 


· करती है परंतु वसुधैव कुटुंब के लिए उसको सभी क्षेत्रों पर समान रूप से विकास कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र हूं आर्थिक क्षेत्र हो कृषि क्षेत्र हो सर्विस क्षेत्र हो सभी में समान रूप से विकास रूपी कार्यक्रम को तेजी से बढ़ावा देना चाहिए नहीं तो पिछड़ेपन के शिकार यह इलाके भारत के समस्त इलाकों से और ज्यादा पिछड़ जाएंगे और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाएंगे।

· यही वह अनुभूति है जहां हमारी वयक्तिक चेतना सामाजिक चेतना के माध्यम से सार्वभौमिक चेतना से मिलती है जहां स्वतंत्रता वसुधैव कुटुंब और सर्वे भवंतू सुखिना: की पृष्ठभूमि में पुष्पित और पल्लवित होती है। 

स्वतंत्रता के बाद अनेक सरकारी आई गई ,सबने अपनी-अपनी समझ से काम किया कुछ अच्छे काम हुए ,कुछ हो रहे हैं ,कुछ आगे होंगे लेकिन वर्तमान पीढ़ी को स्वतंत्रता की सही दृष्टि देने हेतु कुछ प्रयास भी किए जाने चाहिए। प्रथम स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों के अध्ययन और शोध पर ध्यान दिया जाए जिससे देश में स्वतंत्रता के भूले बिसरे योद्धाओं के बलिदानों से परिचित होकर हम स्वतंत्रता का वास्तविक मूल्य समझ सके। दितीय समाज में राजनीतिक लोकतंत्र और सामाजिक सामंतवाद का अंतर्विरोध समाप्त किया जाए जिससे परिवार और समुदाय के स्तर पर स्वतंत्रता के स्वरूप अभिव्यक्ति और मर्यादाओं के संस्कार बचपन में पढ़ सके। तृतीय स्वतंत्रता के प्रति कानूनी अधिकारों वाले दृष्टिकोण की जगह सामाजिकता वाले दृष्टिकोण अपनाने की शिक्षा दी जाए जिससे व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रयोग में समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य और उत्तरदायित्व की सुगंध भी हो। इधर सरकार ने स्वतंत्रता को यथार्थ में बदलने हेतु आर्थिक समावेशन सामाजिक स्वास्थ्य और राजनीतिक शुचिता के क्षेत्र में पहल की है पर अंग्रेजी मानसिकता से जकड़ी नौकरशाही और पुलिस एवं समाज का एक वर्ग उसे जमीन पर उतारने में अवरोध बन रहा है। इसको दूर करना होगा इसके साथ यह भी जरूरी है कि लोगों को अंग्रेजी मानसिकता की गुलामी से निकाला जाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की है नई शिक्षा नीति में प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत मातृभाषा में करने तथा मौलिक चिंतन को प्रोत्साहन देने जैसे अनेक प्रयोग कर मोदी ने मैकाले द्वारा दी गई अंग्रेजी गीत की जड़ में मट्ठा डालने का काम किया है आगामी पीढ़ी को उसके चंगुल से निकालकर स्वतंत्र देश स्वतंत्र परिवेश और स्वतंत्र संस्कृति की आधारशिला पर स्वतंत्रता का आनंद उठाने के लिए नए समाज एवं सशक्त राष्ट्र का निर्माण करने का अवसर देना अभूतपूर्व देश की सेवा होगी।

   

 

- अजीत कुमार 

केंद्रीय विशवविद्यालय इलाहबाद , प्रयागराज , उत्तर प्रदेश

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