खिलौने
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बच्चे आए खिलौनों के पास
जैसे मां-बाप आते हैं
बच्चों के पास
किसी को प्यार से घूरा
किसी को गुस्से से सीधा किया
किसी को दे मारा
किसी को प्यार से पुचकारा
किसी को रास्ते पर पटक दिया
मां-बाप आए और बच्चों को डांटने लगे
-ऐसे फेंके जाते हैं खिलौने ?
डांट लगे बच्चे आए
गलत जगह छूटे खिलौनों के पास
और खिलौनों को पटक-पटक कर डांट लगाई
जैसे कि वे उन खिलौनों के मां-बाप हों
फिर ईश्वर आया सपने में बच्चों के पास
गलत जगह खिलौनों की तरह पड़े हुए
बच्चों के पास
किसी को धौल मारी
किसी को धक्का मारा
किसी का अंग-भंग किया
किसी को अधिक बीमार
किसी को मौत के घाट उतारा
हर कोई ऐसे ही खेलता है अपने खिलौनों से।
(भय भी शक्ति देता है)
कवि: लीलाधर जगूड़ी
संग्रह: ग्यारहवीं दिशा की सातवीं ऋतु
प्रकाशक: संवाद प्रकाशन, मेरठ
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