विध्वंश और सृजन की यात्रा साथ-साथ चलती है : डॉ. आशा तिवारी ओझा

रिपोर्ट : रश्मि सिंह |

काशी प्रसाद जायसवाल व्याख्यानमाला के अंतर्गत महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय,मोतिहारी,बिहार के 'हिंदी विभाग' द्वारा राष्ट्रीय चेतना और हिंदी नाटक विषयक व्याख्यान का आयोजन आभासीय मंच पर किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने की। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.विनय कुमार भारद्वाज(आचार्य एवं अध्यक्ष,हिंदी विभाग,मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार) एवं बीजवक्ता के रूप में डॉ. आशा तिवारी ओझा(सहायक आचार्य, सुंदरवती महिला महाविद्यालय,भागलपुर,बिहार) का सान्निध्य प्राप्त हुआ।

"अप्प दीपो भव" की भावना से अनुप्राणित इस कार्यक्रम का प्रारंभ दीप-प्रज्ज्वलन से हुआ।वक्ताओं एवं व्याख्यान से जुड़े सभी सदस्यों का स्वागत आयोजन समन्वयक प्रो.राजेंद्र सिंह (विभागाध्यक्ष 'हिंदी विभाग' एवं संकायप्रमुख 'भाषा एवं मानविकी संकाय') ने किया। स्वागत-क्रम में प्रो.सिंह ने विश्वविद्यालय की यात्रा पर भी प्रकाश डाला।

बीज वक्तव्य देते हुए डॉ. आशा तिवारी ओझा(सहायक आचार्य,हिंदी विभाग,सुंदरवती महिला महाविद्यालय,भागलपुर,बिहार) ने कहा कि, 'विध्वंश' और 'सृजन' की यात्रा साथ-साथ चलती है। समाज में साहित्यकार की भूमिका बहुत बड़ी होती है। हिंदी नाटकों ने राष्ट्रीय चेतना के साथ समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। भारतेंदु के नाटक एवं राष्ट्रीय चेतना पर विस्तार से बात रखते हुए सामाजिक विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। वक्तव्य को विस्तार देते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश आदि नाटककारों के कृतित्व पर भी प्रकाश डाला। 'रामचरितमानस' आपके वक्तव्य के केंद्र में था। आपने कहा कि, रामचरितमानस लोकतंत्र का चलता-फिरता 'संविधान' है।

मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.विनय कुमार भारद्वाज(आचार्य एवं अध्यक्ष,हिंदी विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया,बिहार) ने कहा कि, जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटकों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को औदात्य प्रदान किया है। 'चंद्रगुप्त' नाटक हमारी संस्कृति का 'रामचरितमानस' है। आज विज्ञान काफी आगे बढ़ चुका है। बढ़ते विज्ञान ने लोक-जीवन के नाटकों के स्वरूप को प्रभावित और परिवर्तित किया है। समाज में इसका प्रत्यक्ष प्रभाव दिख रहा है। लेकिन हम कृत-संकल्पित होकर इस दिशा में कार्य करेंगे एवं 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की संकल्पना को साकार करेंगे।

मार्गदर्शन के क्रम में वक्तव्य देते हुए प्रो.जी.गोपाल रेड्डी(प्रति-कुलपति,महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने कहा कि, नाटक हमारी संस्कृति की पहचान है। विगत कुछ वर्षों में नाटक विधा के प्रति लोगों की रुचि एवं आकर्षण कम हुआ है। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय माननीय कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा के मार्गदर्शन में निरंतर आयोजन कर रहा है। 

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.संजीव कुमार शर्मा( कुलपति,महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने वर्तमान समय में तकनीक की अनिवार्यता एवं उस पर हमारी निर्भरता की ओर संकेत किया। तकनीकी व्यवधान के कारण अध्यक्षीय वक्तव्य बाधित हुआ जिस कारण हम कुलपति सर को नहीं सुन सके।

इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से शिक्षकों, शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की। तकनीकी सहयोग विश्वविद्यालय के तकनीकी सहयोगकर्ता श्री.दीपक दिनकर एवं जन-संपर्क अधिकारी शेफालिका मिश्रा ने कार्यक्रम से सभी को जोड़ा। आयोजन-समन्वयक प्रो.राजेन्द्र सिंह, आयोजन-सचिव डॉ. गरिमा तिवारी(सहायक आचार्य) धन्यवाद-ज्ञापन डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा(सहायक आचार्य, हिंदी विभाग) एवं कार्यक्रम का कुशल संचालन  डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव (सह-आचार्य,हिंदी विभाग) ने किया।


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