जौनपुर निवासी डीएसपी अभिषेक सिंह की पुस्तक बैरिकेड युवाओं में तेजी से हो रही है लोकप्रिय

 

बैरिकेड शब्द सुनते हुए ही दिमाग पुलिस द्वारा धरना प्रदर्शन में रास्ते को रोकने के लिए इस्तेमाल होनी छोटी सी लोहे की दीवार की छवि उभरती है। आम तौर बैरिकेड के इस पार पुलिस बल उस पर प्रदर्शनकारी होते हैं, कभी कभी रास्ते को डायवर्ट करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। छत्तीसगढ़ में डीएसपी के पद पर तैनात अभिषेक सिंह ने बैरिकेड नाम से एक पुस्तक लिखी है जो काफी लोकप्रिय हो रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र बीजापुर के भोपालपट्नम में पदस्थ डीएसपी अभिषेक सिंह ने अपने जीवन के अनुभवों को लेकर 'बैरिकेड" किताब लिखी है। अभिषेक सिंह ने बैरिकेड की कहानी कुछ ऐसी गढ़ी है, जिससे कि कथानक कई शहरों से होकर गुज़रता है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इलाहाबाद, सिवान, जौनपुर, बनारस, लखनऊ, दिल्ली और रायपुर सारे शहर एक-एक कर ज़िन्दा हो उठते हैं। “बी. एच. यू., बिरला और बवाल” से गुज़रते हुए पाठक रोमाँच के एक ऐसे सफ़र पर निकल चुका होता है, जहाँ से उसे वापस लौटने का मन ही नहीं करता। कहानी पानी की तरह बहती है और एक ऐसे सफ़र पर निकलती है, जिसमें प्यार, निराशा, भटकाव, दोस्ती, बेफ़िक्री, डर, साहस, रोमाँच, हँसी-ठिठोली, मस्ती, संघर्ष और सफ़तला के सारे रंग हैं। बैरिकेड कहानी है भारत के मिडिल क्लास के सपनों की। बैरिकेड कहानी है एक ऐसे नायक की, जिसने स्याह दिनों में ज़िन्दगी की हर बाधा, हर बैरिकेड को तोड़ने की तैयारी की, और उजले दिनों की पटकथा लिख डाली। पुस्तक के सन्दर्भ में अभिषेक बताते हैं जब राजनीति में था, तो बैरिकेड को कूदकर पार करना होता था, विरोध दर्ज कराने के लिए बैरिकेड की बाधा को तोड़कर आगे जाने का जुनून रहता था। अब पुलिस की नौकरी में आने के बाद बैरिकेड के इस पार आ गया। मेरा काम बैरिकेड के उस पार से कोई इस पार ना आये, उसे रोकने का हो गया है। कभी बैरिकेड के इस पार था, अब बैरिकेड के उस पार हूं। अभिषेक ने बताया कि जब कैरियर बनाने का समय आया तो वे सिविल सर्विसेज की तैयारी का गढ़ बोले जाने वाले दिल्ली के मुखर्जी नगर पहुंचे, तैयारी के साथ - साथ दिल्ली में वे सामाजिक कार्यों में भी भाग लेते रहे। मूलतः उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी अभिषेक छत्तीसगढ़ पुलिस में वर्ष 2013 में डीएसपी के पद पर चयनित हुए। अब तक अभिषेक जशपुर, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, बिलासपुर और बीजापुर में पदस्थ रहे हैं। पिता बिहार में जज के पद पर पदस्थ थे इसलिए उन्होंने पढ़ाई के दौरान 16 साल बिहार के अलग-अलग जिलों में बिताए। इसके बाद इलाहाबाद, जौनपुर, बनारस में पढ़ाई पूरी की।