भारतीय कविता का स्वाभिमान थे मंगलेश डबराल | कृपाशंकर चौबे


 

मंगलेश डबराल हिंदी ही नहीं, भारतीय कविता के स्वाभिमान थे। बांग्ला में मंगलेश जी की किताब ‘निर्वाचित कविता’ के लोकार्पण समारोह में नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती ने कहा था कि महान कविता वह है जो हमारे आनंद के समय उसका समर्थन करे, शोक के समय सांत्वना दे और पराजय के बाद संघर्ष करने का साहस दे, इस कसौटी पर मंगलेश की कविताएं खरा उतरती हैं। ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘आवाज भी एक जगह है’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘घर का रास्ता’, ‘मुझे दिखा एक मनुष्य’, ‘नए युग में शत्रु’ और ‘कवि ने कहा’ कविता संग्रहों के एकांत स्रष्टा मंगलेश डबराल का एक वैशिष्ट्य यह है कि वे अपनी कविता में नई सामाजिक और राजनीतिक चेतना तथा नया सौंदर्यबोध लेकर आए। धर्मनिरपेक्षता का भाष्यकार कवि निश्चित ही सामंती बोध और पूंजीवादी शोषण का विरोधी होगा। लेकिन जरूरी नहीं कि वह विरोध शोर मचाकर हो। मंगलेश की कविता सामंती बोध तथा पूँजीवादी छल का प्रतिरोध शोर मचाकर नहीं करतीः

जो कुछ भी था जहाँ जहाँ हर तरफ

शोर की तरह लिखा हुआ

 उसे ही लिखता मैं

 संगीत की तरह।

मंगलेश जी की कविताओं का भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की, बल्गारी आदि भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है किंतु वे अनुवाद के लिए कविताएं नहीं लिखते थे। स्वयं मंगलेश ने भी अनुवाद किया। उन्होंने बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की पांच सौ कविताओं का अनुवाद किया। उन्होंने हांस माग्नुस ऐंत्सेंस्बर्गर (जर्मन), यानिस रित्सोस (यूनानी), ज्बग्नीयेव हेर्बेत, तादेऊश रूजेविच (पोलिश), पाब्लो नेरुदा, ऐर्नेस्तो कार्देनल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कवितावों का भी हिंदी में अनुवाद किया। जर्मन उपन्यासकार हेर्मन हेस्से के उपन्यास ‘सिद्धार्थ’का भी अनुवाद किया।

मंगलेश ने बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य की कविता ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’का भी अनुवाद किया। ज्ञानरंजन के संपादन में निकलनेवाली हिंदी की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका ‘पहल’ ने हिंदी में उसे पुस्तिका के रूप में छापा था। उस कविता के अनुवादक मंगलेश डबराल के शब्दों में कहें तो वह कविता संस्कृति के मोर्चे पर बेचैनी से सक्रिय लोगों के लिए काव्यात्मक घोषणा पत्र या ‘थीम पोएम’ बन गई थी। विद्रोही और क्रांतिकारी आवेग के अलावा नवारुण की कविता में कथ्य, संवेदना और फार्म की विविधता है। नवारुण की कविता में राजसत्ता के आतंक और जीवन को अमानवीय बनानेवाले शत्रुओं के खिलाफ भीषण रोष है। दिलचस्प है कि मंगलेश की कविता में भी कथ्य, संवेदना और फार्म की विविधता है और जीवन को अमानवीय बनानेवाले शत्रुओं के खिलाफ भीषण रोष है। दरअसल मंगलेश हिंदी की समृद्ध साहित्य परंपरा के ऐसे हिस्सेदार थे जिन्हें अलगाकर आधुनिक हिंदी साहित्य का कोई इतिहास नहीं लिखा जा सकता। मंगलेश कवि-अनुवादक ही नहीं, गद्यशिल्पी भी थे। ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’,‘एक बार आयोवा’ और‘एक सड़क एक जगह’पुस्तकें उनके विलक्षण व पारदर्शी गद्य की सबूत हैं। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यू.आर. अनंतमूर्ति, कुर्रतुल ऐन हैदर तथा गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्त चित्रों की पटकथा लिखी। उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है। विनम्र श्रद्धांजलि।

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