"सूरज की पहली किरण पड़ते ही खिल जाते हैं, ये फूल ही हैं जो सदा मुस्कुराते हैं ।
इन्हें तो हर रोज राहों में खिलना होता हैं,
खिलकर फिर मुरझाना होता है।
खिलना फिर मुरझाना इस तरह इनकी लीला समाप्त हो जाती हैं,
नई सुबह के साथ नए फूलों की बारी आती हैं।
कल की कलियां ही तो आज के फूल होते हैं,
शूलों के साथ ही रहना इनके उसूल होते हैं।
सीखना है तो इन फूलों से सीखिए जो खुद शूलाें में रहकर दूसरों के जीवन को महकाते हैं,
सुख - दु:ख तो फूल और शूल की भांति हैं जो हमे जीवन जीने का पाठ सिखाते हैं ।"
- श्वेता जायसवाल
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
एम. ए.- प्रथम वर्ष
( राजनीति विज्ञान)